Sunday, August 3, 2008

The summary of the life till now

मेरी जिन्दगी की शुरुआत एक हिन्दी माध्यम के स्कूल से हुई थी, यही कारण है की मैं अपना ब्लॉग भी हिन्दी में ही शुरू कर रहा हूँ। जैसे जैसे आप मेरे ब्लॉग को पढेंगे वैसे वैसे आपको इस बात का अहसास हो जाएगा की मेरे ब्लॉग ने आपके अनुभव को भी बढाया और आपको एक नई पहलु एक नए तरह की सम्भावना का अहसास हुआ। तो आइये शुरू करते हैं मेरा ब्लॉग जिसे मैंने Life's Letter का नाम दिया है। Life's Letter, मतलब 'जीवन गाथा', यह आपको मेरे स्वभाव और चरित्र से अवगत कराएगा, ताकि आप मुझे अपने मन में चित्रांकित कर सकें एवं मेरी ब्लॉग को मेरे वास्तविक स्वाभाव से जोड़ कर देख सकें।

जीवन के शुरुआती साल
मेरा जन्म बिहार के एक छोटे से गाँव में हुआ था। जब से मैंने देखने और समझने की शुरुआत की, मैंने गाँव की उन सारी चीज़ों का आनंद लिया जो की मूलभूत रूप में एक गाँव में ही पायी जा सकती हैं। जैसे ठंढे मौसम में अंगीठी का मज़ा, सुबह की वो ताज़ी और ठंढी हवा, पूरब में स्थित एक विशालकाय पीपल का दरख्त जिसे देख कर मैंने ना जाने कितने वक्त गुजारे, किस किस तरह की कल्पनाएं की, सुबह में उठने के बाद सिर्फ़ वही एक चीज़ थी जो की मुझे अपने होने का अहसास दिलाती थी एवं संतुष्ट करती थी (शायद उसकी अचलता का परिणाम हो) -वो विशालकाय दरख्त। हर किसी की तरह मुझे भी अपना बचपन याद है, और यह मेरे जिंदगी में तनाव प्रबंधन का एक जरिया भी है। जब कभी मुझे तनाव होती है तो मैं अपना बचपन याद करता हूँ। आम के बागन में आम खाने का मज़ा, वो आलू गोभी की सब्जी, बैगन का भरता, आलू के चोखे, गरम गरम मक्के की रोटी और दूध, चूरा दही और ना जाने क्या क्या! वैसे आपलोग समझेंगे की यह सब मैं क्या लिख रहा हूँ, लेकिन मैं इन चीजों से दूर नहीं जा सकता यह सब ऐसी चीजें हैं जो की मुझे परिभाषित करती हैं, मेरी सोच मेरा नजरिया अगले १८ साल तक भी शहर में रहने के बाद बदल नहीं पाया, जबकि मैं अपने आपको हमेशा एक काफ़ी लचीले-विचार का आदमी मानता हूँ । मैं जहाँ भी गया इन सात सालो के बाद मेरी सोच और नजरिया की नींव नहीं बदली। मैं सात सालो में एक बार भी स्कूल नहीं गया। वास्तव मैं स्कूल ख़ुद तो बिल्कुल नहीं जाया करता था, लेकिन मैं स्कूल भेजा जाता था क्यूंकि मैं घर में सबकी काफी परेशान किया करता था, और मैं अपने दीदी के साथ उसी के क्लास में बैठा करता था, वहां मेरा कोई होम वर्क नहीं हुआ करता था। मैं दीदी के बगल में जूट का बोरा बिछा कर सो जाता था, और फ़िर लंच में ही उठता था, क्यूंकि मुझे खाने का बहुत शौक थातो ऐसी थी मेरी पहले सात साल की जिन्दगी। आजकल के बच्चे जो ३ साल से पढ़ना शुरू कर देते हैं, उनके हालत एवं उनपर हो रहे अत्याचार को मुझसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता। लेकिन आप देखेंगे जिन्दगी ने मुझे ऐसे सभी मौके दिए जो कोई कॉन्वेंट educated kid को नसीब होती है।

शेष...